एक ऐसा शिवधाम जहां हर साल बढ़ता है शिवलिंग

             जहाँ की मिट्टी पारस है ,वही शहर बनारस है

नमस्कार मित्रों , मैं घुम्मकड़ लड़की एक बार फिर निकल पड़ी हूँ ,काशी के एक नए अध्याय को टटोलने,और आप सबको लेकर चल रही हूं एक चौका देने वाले धाम।

जी हाँ ,बिल्कुल सही सुन रहे है आप सावनी माहौल केसरी अंदाज चहु ओर एक ही उदघोष हर हर शम्भू, बोल बम बोल बम। ये सुर है शिवभक्तों का ये जोश और उमंग है शिव के सेवकों का,ये स्नेह है शिव के महिमा से जुड़ी तभी तो लोग नंगे पांव शिवशम्भु के जयघोष से कहा से कहा पहुँच जाते हैं।

यू तो काशी के कण-कण में वास करते है शिव। शिव ही यहां के आराध्य हैं और शिव ही लोगों की रक्षा। शिव के इस आनंद वन में शिव के महिमा - चमत्कारों की कोई कमी नहीं है। यहां बाबा भैरव रूप में रक्षा करते हैं तो द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ तारक मंत्र से तारते हैं। इन रूपों के आलावा महादेव का एक और रूप हैं जो काशी में वास करता है और हर साल अपनी उपस्थिति से सबको आश्चर्य में डाल देता हैं। जिसके दर्शन कराने के लिए मैं निकल पड़ी हु काशी के मदनपुरा।


तिल के समान बढ़ता है काशी का यह शिवलिंग, सावन में लगता है भक्तों रेला


काशी के सोनारपुरा क्षेत्र में बाबा तिलभांडेश्वर का प्राचीन मंदिर है। ये मन्दिर काशी के केदार खंड में स्थित इस मन्दिर की मान्यता ये है कि बाबा तिलभाण्डेश्वर स्वयंभू हैं। किवदंतियों के मुताबिक भगवान शिव का ये लिंग मकर संक्रांति के दिन एक तिल के आकार में बढ़ता है। इसका ज़िक्र शिव पुराण धर्म ग्रन्थ में भी मिलता है। मंदिर का निर्माण सैकड़ों वर्ष पहले हुआ था। सतयुग से लेकर द्वापर युग तक यह लिंग हर रोज एक तिल बढ़ता रहा।


तिलभांडेश्वर जो हर साल एक तिल के बराबर बढ़ते हैं, सावन में तिलभाण्डेश्वर के दर्शन के लिए भक्तों का जमावड़ा लगता है


काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है ,तिलभाण्डेश्वर!हर वर्ष इसमें तिल भर की वृद्धि होती है। इस स्वयंभू शिवलिंग के बारे में वर्णित है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र की भूमि पर तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के मध्य से शिवलिंग उत्पन्न हो गया। जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा तो पूजा-अर्चन करने के बाद तिल चढ़ाने लगे। मान्यता है कि तभी से इन्हें तिलभाण्डेश्वर कहा जाता है।

काशीखण्डोक्त इस शिवलिंग में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं। बताया जाता है कि मुस्लिम शासन के दौरान मंदिरों को ध्वस्त करने के क्रम में तिलभाण्डेश्वर को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गयी। मंदिर को तीन बार मुस्लिम शासकों ने ध्वस्त कराने के लिए सैनिकों को भेजा लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा घट गया कि सैनिकों को मुंह की खानी पड़ी। अंगेजी शासन के दौरान एक बार ब्रिटिश अधिकारियों ने शिवलिंग के आकार में बढ़ोत्तरी को परखने के लिए उसके चारो ओर धागा बांध दिया जो अगले दिन टूटा मिला। कई जगह उल्लेख मिलता है कि माता शारदा इस स्थान पर कुछ समय के लिए रूकी थीं।  तब से आस्था और गहरी हो गयी। समय बीतता गया और बाबा हर साल बढ़ते गए। आज काशी की जिस गली में मंदिर हैं वो 25 फिट तक ऊपर जा चुका है।


वही यह भी बताया जाता है कि इसी स्थान पर यानी महर्षि विभाण्डेश्वर ऋषि भगवान शिव का आराध्य कर रहे थे। लम्बे समय के जप तप से उन्हें भगवान शिव के दर्शन प्राप्त हुए थे तभी से इस जगह का नाम .....तिल+ विभाण्डेश्वर यानि  तिलभांडेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।

        काशी के केदार खंड में स्थित बाबा तिल भांडेश्वर मंदिर का वर्णन शिव पुराण धर्म ग्रन्थ में भी मिलता है। किवदंतियों के मुताबिक भगवान् शिव का ये लिंग मकर संक्रांति के दिन एक तिल के आकार में बढ़ता है।अति प्राचीन ये शिवलिंग स्वयम्भू शिवलिंग है। मंदिर का निर्माण सैकड़ों वर्ष पहले हुआ था।पं अश्वनी चौबे ने बताया कि सतयुग से लेकर द्वापर युग तक यह लिंग हर रोज एक तिल  बढ़ता रहा।लेकिन कलयुग के आगाज़ के साथ लोगों को यह चिंता सताने लगी की यदि भगवान् शिव ऐसे ही हर रोज बढ़ते रहे तो एक दिन पूरी दुनिया ही इस लिंग में समाहित हो जायेगी तब लोगों ने यहाँ शिव की आराधना की शिव ने प्रसन्न होकर दर्शन दिया और साथ ही यह वरदान भी दिया की हर साल मकर संक्रांति में मैं एक तिल बढ़कर भक्तों का कल्याण करूँगा ।इस मंदिर के साथ अनेक मान्यताये जुडी है कि वर्षों पहले इसी स्थान पर विभाण्ड ऋषि ने शिव को प्रशन्न करने के लिए तप किया था ।  इसी स्थान पर लिंग के रूप में बाबा ने उन्हें दर्शन दिया था । कहा ये भी जाता है की शिव ने दर्शन उपरांत विभाण्ड ऋषि से कहा था कलियुग में ये रोज तिलके सामान बढेगा और इसके दर्शन मात्र से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।

महज़ जला- अभिषेक से मिलती है मोक्ष से मुक्ति


यहां बाबा पर जलाअभिषेक करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है,साथ ही बेलपत्र चढ़ाने से ग्रहों की शांति भी बरकरार रहती है।वही तिल चढ़ाने से शनि का प्रकोप भी कम हो जाता है। जिससे शनि दोष भी खत्म होता है और सुख की प्राप्ति होती है। बाबा तिलभाण्डेश्वर के हर दिन दर्शन करने से अन्नपूर्णा में वृद्धि और पाप से तिल भर मुक्ति मिलती हैं। 

यह मंदिर समय सुबह 5 बजे खुलता है और रात्रि साढ़े 9 बजे तक बन्द होता है। वहीं दिन में 1 से 4 बजे के बीच गर्भगृह बंद रहता है। प्रतिदिन आरती सुबह 6 बजे होती है। मंदिर परिसर में ही तिलभाण्डेश्वर मठ भी स्थित है। जिसमें साधु संत रहते हैं।

तो कैसे लगी आज की यात्रा कमेंट्स बॉक्स में जाकर जरूर बताएं साथ ही साथ आपसे अनुरोध करूँगी की यदि काशी आए तो इस स्वयम्भू शिवलिंग के दर्शन अवश्य करें..फ़िर मिलूंगी ,और चलूँगी एक ऐसी ही खोज पर जहाँ हो कुछ अलग और खास, तब तक के लिए इज्जाजत दीजिए नमस्कार।




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