त्रिशूल से जुड़ी उत्तरवाहिनी की कहानी

 
" अकाल मृत्यु वो मरे ,जो काम करे चाण्डाल का
काल भी उसका क्या बिगाड़े,जो भक्त हो महाकाल का "



नमस्कार मित्रों,
आप सभी को सावन माह की हार्दिकशुभकामनाएं!सावन के पावन अवसर पर क्यों न हम चले आज की यात्रा काशी के उस धाम की ओर जहाँ शिव ने अपने त्रिशूल की धार से मोड़ दिया था उत्तरवाहिनी गंगा को।

हम सभी ने ये बाते तो सौ बार पढ़ी और सुनी होगी कि ,काशी के कण-कण में शिव है और यहां की महिमा भी अनंत है ,काशी को मंदिरों का शहर कहा जाता है और यहां की गलियों से सड़क तक कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी पौराणिकता और महत्त्व पुराणों में मौजूद है। अब ये बातें कौन झुठला सकता है भला।

सौ टका सच को खंगालने मैं चली हु काशी के माधवपुर।अब आप क्या खड़े खड़े सुन रहे ,फटाफट से चलिए मेरे साथ काशी के माधवपुर जहाँ भगवान शिव की अत्यंत प्राचीन मंदिर घाट के किनारे आज भी अपने इतिहास को बरकरार रखी है,अब ये मैं नही इतिहास के पन्ने गवाह है साथ ही यह पवित्र स्थल।

     काशी खण्ड से जुड़ी ये प्राचीन तीर्थ स्थल,जहाँ आज भी लम्बी दूरी की यात्रा तय कर (15 किलोमीटर) की दूरी तय कर भक्त अपने प्रभु के दर्शन करते है। काशी के दक्षिण में बसा यह इलाका इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि काशी में उत्तरवाहिनी होकर बहने वाली गंगा इसी मंदिर के पास घाटों से उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश कर रही है, ऐसा क्यों और क्या वजह है जो गंगा काशी में हुई उत्तरवाहिनी उसी से जुड़ी है इस मंदिर की पूरी रहस्यमय कहानी।

विशालकाय शिवलिंग, दूर दराज से आने वाले भक्तों का ताता,होम ओर जयकारे से गूँजता भवन, ठंडी ठंडी शांत निश्चल चंचल रूपी धारण की हुई देवी गंगा।  मन्दिर प्रांगण में प्रवेश करते ही भोले का दर्शन। एक बड़े से करघे में विराजमान महादेव जिनका नाम " शूलटंकेश्वर"।


https://youtu.be/3F0VJNk32-0

शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर की कहानी अत्यंत ही दिलचस्प है,कहते है यहाँ महज़ दर्शन से पूरी होती है वो हर मुरादें जो बरसो से न पूरी हुई हो। वही यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी अपनी इच्छा से वर हो या वधु शादी करना चाहते है तो ,महज़ एक बार बाबा शूलटंकेश्वर के दर्शन मात्र से ही उसकी इच्छा पूर्ण होती हैं।

शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में जिस स्थान से गंगा उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती हैं वहां है बाबा शूलटंकेश्वर का मंदिर। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि,इस मंदिर का नाम पहले माधव ऋषि के नाम पर माधवेश्वर महादेव था।   

            शिव की आराधना के लिए उन्होंने ही इस लिंग की स्थापना की थी। यह बात गंगावतरण से पूर्व की है। गंगा अवतरण के समय भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से गंगा को रोक कर यह वचन लिया था कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी।

साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस खींचा। यहां तपस्या करने वाले ऋषियों-मुनियों ने तभी से इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रखा।

वही इसके पीछे एक और भी धारणा जुड़ी हुई है कि ,जिस प्रकार यहां गंगा का कष्ट दूर हुआ उसी प्रकार अन्य भक्तों का कष्ट दूर हो। यही वजह है कि पूरे वर्ष तो यहां भक्त दर्शन को आते ही है लेकिन जिन भक्तों की यहां दर्शन से पूरी होने वाली मनोकामनाओं के बारे में पता है वो सावन के महीने में दूर दराज से भी आते है।




आपको बता दे कि शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर काशी के पुरातन मंदिरॊ मॆ सॆ एक है। इस मंदिर का उल्लॆख " काशी खंड" मॆ भी मिलता है यह मंदिर कैन्टस्टेशन से लगभग 16 कि॰मी॰ दूरी  दक्षिण वाराणसी ग्राम- माधोपुर  मे स्थित है। शिवलिंग से बने अति भव्य इस मंदिर के  एक तरफ "गंगा नदी" है।गंगा नदी यहाँ  से  वाराणसी नगर मॆ प्रवेश करती  है।, जो अपनी मूल सुन्दरता , पवित्र जल से वाराणसी को शुद्ध करती है।

इस मंदिर मे भगवान शिव  के शिवलिंग रूप मे विरजमान है। इस मंदिर मे बाबा हनुमान ,माता पार्वती, गणेश जी,माँ सिद्धिदात्री मां दुर्गा,श्री राधे कृष्णा एवं प्रभु श्री राम सीता की मूतिॅ रूप मे अलग से मंदिर है।

वही शिव महापुराण में वर्णित है कि शूलटंकेश्वर को काशी खंड का दक्षिणी द्वार कहा जाता है। पूर्व में यह क्षेत्र आनंद वन के नाम से प्रसिद्ध था। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान यह स्थल पहला पड़ाव हुआ करता था,क्योंकि  यहां से गंगा उत्तरवाहिनी होती है। यहां प्रत्येक सोमवार भक्तों का रेला लगा रहता था,लेकिन वक़्त बदला हालात बदलें और धीरे धीरे मन्दिर में लगने वाली तादाद भीड़ कम हो गई।


यहाँ अक़्सर मांगलिक कार्यक्रम एवं मुंडन इत्यादि मे भोले नाथ के दशॅन कॆ लिये लोग आतॆ है। मंदिर के अंदर हवन कुंड है, जहाँ  हवन होते है। साथ ही सावन महिने मे एक माह एवं  शिवरात्रि का बहुत बड़ा मनमोहक मेला भी लगता है।
तो दोस्तों ये थी हमारी आज की यात्रा ,कैसी लगी आज की यात्रा मुझ घुम्मकड़ी के साथ शेयर करना न भूलें। आपके प्रोत्साहन से ही मुझे ऊर्जा मिलती है एक कदम ओर काशी के इतिहास को टटोलने में।


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