अड़भंगी शिव अड़भंगी टोली दिग्म्बर खेलें मसाने होली

आख़िर क्या है बनारस में??एक बाबा काशी विश्वनाथ का मन्दिर,दूसरा सकरी गलियां व घाट। सही कहा ना मैंने इतना सा ही तो है ये बनारस!नही.. नही रुकिए जनाब ये काशी है त्रिनेत्रधारी महादेव की काशी! जितना कुछ समाया है एक सामान्य दिखने वाले जटाधारी शम्भू में उतना ही समाहित है उनकी इस नगरी में जिसने जितना खोजा उतना ही पाया। यहां एक कहावत कही जाती है
"जे बनारस क सुबह नाहीं देखलस, समझि ल उ पूरी दुनिया घूमि के भी कुछ नाहीं देखलस" बनारस भी उसी समुद्र सा है।ब‍िना अल्हड़ मस्ती और हुल्लड़बाजी के बनारस अधूरा है।अब देखिए ना यहां शव भी अपनी अंतिम यात्रा पर शिव शिव शिव कहता है। ये शहर अपने मे ही एक उत्सव है,जहां लोग मरने के लिए तो आते है लेकिन उत्सव के हिस्सा में शामिल हो जाते हैं। फाल्गुन रंग- गुलाल और हँसी-खुशी का त्योहार है, लेकिन इस रंग गुलाल के भी अनेक रूप पूरे भारत मे देखने को मिलते हैं। कही प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन होता है। कही भांग-ठंडाई की जगह नशेबाजी होती है।कही लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों पर हुल्लड़ बाजी होती है।लेकिन बनारस में आज भी बनारसी घराना शामिल है।होली के हुल्लड़बाजी जश्न में भी शास्त्रीय संगीत व ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती , ठुमरी की शान आज भी देखने को मिलती हैं। बहुत कुछ समेट कर रखी है ये नगरी इसीलिए तो जनाब इसे जिंदादिल शहर कहा जाता हैं। इसीलिए तो कहा गया है कि- बनारस तेरे रंग हजार!



"अरे नाथ से खेले,अरे राख से खेले
अरे भष्म से खेले, भभूत से खेले
रेत से खेले,प्रेत से खेले,हम से खेले,रंग से खेले
चौसठ योगिनी नाचे गावे,डमडम डम डमरू बाजे
मसान से राख से खेले होली,धूम मचावे मशाने में होरी खेले मसाने में....!"


मशहूर गायिका मालनी अवस्थी का यह लोकप्रिय गीत हर किसी के मन को मोह लेता है जिस तरह से उन्होंने महाश्मशान और होली और बाबा संग राख से खेले जाने वाले होली का वर्णन किया है वो अत्यंत ही दिलचस्प है।हर कोई एक बार तो मथुरा और वृंदावन की लट्ठमार होली को छोड़ एक बार काशी की इस दिलचस्प होली को देखना जरूर चाहेगा। महज आधे घण्टे से भी कम की ये दिलचस्प होली हर किसी के मन से मौत का ख़ौफ़ निकाल देता है। दुनिया की सबसे अनूठी होली जिंदगी और जिंदादिली से भरा एक अलग किस्म का शहर जहां रंग गुलाल अबीरे की होरी ही नही ,अड़भंगी शिव के नगरी की अद्भुत अलौकिक हजारों वर्षो से मनाए जाने वाली पारम्परिक होरी ..."चिता भस्म की होली " मशहूर है। कहते है बाबा विश्वनाथ के बिना काशी अधूरी है। भोले की नगरी में होली की शुरूआत भी बाबा से ही होती है।रंगभरी एकादशी को बाबा के साथ अबीर-गुलाल खेलकर होली की शुरूआत होती है।बाबा स्वयं महाश्मशान की मणिकर्णिका पर भूतभावन बन अपने गणों के साथ होली खेलने आते हैं।

 

महंत श्री लिंगिया जी महाराज बताते है कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन की एकादशी के दिन ही बाबा विश्वनाथ देवी पार्वती का गौना कराकर दरबार लौटे थे। इस अवसर की खुशी में काशीवासी काशी की इन सकरी गलियों में बाबा की पालकी निकालते है और रंगों- उत्साहो के बीच ढोल-नगाड़ों डमरू के साथ भगवती का आगमन होता है। लेकिन इसके ठीक अगले दिन का नजारा इससे विपरीत होता है जिसे देख पाना हर किसी के संयोगवश की बात है। वैसे तो हर माह में उत्सव,हर घाट व गलियों में महोत्सव यहां सामान्य है;लेकिन मस्तानों की नगरी में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान की होली दुनिया की सबसे अनूठी होली है। महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच एक तरफ गण दूसरे तरफ भूत प्रेत की टोली जब इन सकरी गलियों से होकर गुजरते है तब पूरा काशी शिवमय हो जाता है।वाक़ई यह नज़ारा देखते बनता है जब पालकी पे सवार हो महादेव हजारों के तादाद में अपने भक्तगणों के साथ मणिकर्णिका की ओर निकल पड़ते है।कोई भस्म से लिपटा हुआ तो कोई औघड़ रूप धारण किये,कोई प्रेत रूप लिए कोई मुण्डमाल धारण किये झूमते नाचते बढ़ता चला जाता है। अबीर ,गुलाल, डमरू दल के जयघोष से हर हर महादेव की गूंज निकलती हैं। भांग, पान और ठंडई होली के रंग को और रंगने का काम करती है।ढोल, मजीरे से लेकर डमरुओं पर झूमते शिवगण मणिकर्णिका की ओर बढ़ते है और फिर जलती दहकती चिताओ के बीच चिता-भस्म की होली खेली जाती है। चौकिए मत!;सुनने में भले ही अटपटा लगे लेकिन ये अन्य निवासियों के लिए ही काफी अजीब है लेकिन काशीवासियों को इसी दिन का हर वर्ष इन्तेजार रहता हैं।एक तरफ जहां लोग शव से दूरी बनाते है यहां लोग उसी राख से जश्न मनाते है।
 
वाक़ई कई देखने वालों के ल‍िए ये कुछ अजीब-सा नजारा है लेकिन चारों तरफ स‍िर्फ हर-हर महादेव की गूंज और शिवगण,भूत-पिशाच,दृश्य-अदृश्य आत्माएँ,साधु- संत,औघड़ दानी और भक्तों के साथ जब महाश्मशान पर बाबा मसान जलती च‍िताओं के बीच अपने भक्तों के साथ भस्म से होली खेलते हैं तो यह माहौल देखते बनता है। चारो ओर घंट-घड़ियाल, शंखनाद, पुष्पवर्षा,राख अबीर गुलाल भस्म के गुबार उड़ाए जाते है।हर कोई मणिकर्णिका पर झूम रहा होता है .." होरी खेले मसाने में"। यह भस्म कोई साधारण भस्म नहीं, शव के जलने के बाद पैदा होने वाली राख व महादेव को चढ़ने वाला चंदन का भस्म से चिता भस्म खेले जाने वाली होली से ही बनारस में होली की शुरुआत होती है।परंपराओं के अनुसार भगवान शिव के स्‍वरुप बाबा मशान नाथ की पूजा कर श्‍मशान घाट पर चिता भस्‍म से उनके गण होली खेलते हैं। काशी मोक्ष की नगरी है और मान्‍यता है कि यहाँ भगवान शिव स्‍वयं तारक मंत्र देते हैं। लिहाजा यहाँ पर मृत्‍यु भी उत्‍सव है और होली पर चिता भस्‍म को उनके गण अबीर और गुलाल की भांति एक दूसरे पर फेंककर सुख-समृद्धि-वैभव यश संग शिव की कृपा पाते है।लगभग आधे घण्टे से भी कम की यह झलकियां काशीवासियो और देश- विदेश से आए सैलानियों का मन मोह लेता है। हर तरफ ‘हर हर महादेव’ और डमरुओं की आवाज से यह नजारा काफी अनोखा प्रतीत हो उठता है यही बनारसी रंग हर किसी को अपने रंग में रंग लेता है जी हां रंगभरी एकादशी से होली का नशा काशीवासियों पर ही नही बल्कि विदेशी सैलानियों पर भी छा जाता है।पौराणिक मान्यता अनुसार छिपे है कई राज लेकिन इनमें से एक मुख्य बात है जब बाबा औघड़दानी बनकर खुद महाश्मशान में होली खेलते हैं तब इस नगरी में प्राण छोड़ने वाला व्यक्ति शिवत्व को प्राप्त होता है। वही यह भी कहा जाता है कि सृष्टि के तीनों गुण सत, रज और तम इसी नगरी में समाहित हैं।बाबा मसान मुक्ति का तारक मंत्र देकर सबको तारते हैं।यह प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है इतना ही नहीं,इस दिन बाबा मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार के लिए आयी सभी चिताओं की आत्मा को मुक्ति प्रदान करते हैं।इस दिन मशान नाथ मंदिर में घंटे और डमरुओं के बीच औघड़दानी रूप में विराजे बाबा की आरती उतारी जाती है।यह अद्भुत दृश्य वाक़ई देखने लायक है क्योंकि गम के माहौल में अचानक कुछ पल में जश्न का माहौल हो जाए तो चिताएं भी महादेव महादेव का नारा लगाने लगती हैं। बस यही से शुरुआत होती है बनारस की होरी। तो देखा आपने कितना कुछ है इस बनारस में!






https://youtu.be/CmeWGborj_U








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