देर आयद दुरुस्त आयद




जिंदगी में इमरजेंसी सायरन तभी बजता है जब हम जिंदगी की रफ्तार से भी तेज भागते है। उफ्फ़... यू जिंदगी का तार- तार हो जाना। सड़को पर होती निरंतर मौते मानो आए दिन न्यौता पर न्यौता देती हो। इसे रोकने की पहल हर वर्ष होती है लेकिन क्या वाक़ई इसका कुछ भी, कही भी असर दिखता है। कौन है इन सबके पीछे वक़्त, मौत या हमारी रफ़्तार....?इन दिनों यूपी के सड़कों पर दौड़ पड़ी है "सड़क सुरक्षा अभियान"! लेकिन सवाल तो यह है कि क्या ये अभियान उन तमाम मौतों के न्यौता को टाल देंगी या इन अभियानों के बाद होगा एक बड़ा विस्फोट!

दुःखद है,जिस देश मे आज की पीढ़ी खुद को सर्वहारी समझ रहे हो उसी देश में आए दिन सड़क दुर्घटनाओं को लेकर अभियान चलाना पड़ता है और यह निरंतर सीख देनी पड़ती है कि सड़क सुरक्षा जरूरी है। तो क्या यह मान ले कि हम आधुनिकता के घोड़े पर भले ही घुड़सवारी कर रहे लेकिन हम घुड़सवारी के लायक नही! यदि हाँ, तो क्यों??? जब सरकार के ही निरंतर प्रयासो से ही हम अपने जान कि कीमत को आँक पाएंगे तो यह आधुनिकता की हवा क्यों उड़ रही।आज भले ही सड़क सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभर चुका है,जिसके जिम्मेदार है आज का एकांकी और युवा पीढ़ी की सोच। अक्सर जब भी किसी युवा पीढ़ी को गाड़ी दिलाई जाती है तो उसे सड़कों पर सतर्क चलने की हिदायत दी जाती है। तब जवाब होता है कि क्या हम छोटे बच्चे हैं जो सड़क पर चलते समय सुरक्षा नियमों को नहीं जानते। अक्सर ऐसे लोग ही जिंदगी और मौत के बीच के उस लम्हे को भांप लेते है जब घटनाएं घटती होती है। ठीक उसी तरह जिस तरह खुशी और गम के बीच बस कुछ दूरी ही तय हो।विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक; प्रत्येक वर्ष सड़को पर पूरे विश्व के पचास लाख लोग दम तोड़ देते है जिनमें सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले ज्यादा लोग पैदल चलने वालों की होती है।क्यों क्या उन्हें पैदल चलने का गुनाह मोल लिया या इन दो पहिया चार पहिया वाहन को देखा जाए तो इनके लिए सड़क सुरक्षा का मतलब कुछ नहीं है। आज सड़क सुरक्षा मात्र एक वैचारिक संकल्प सा हो गया है। जबकि यह धारणा ही ग़लत है। यह जीवन को सुरक्षित रखने का एक महाअभियान है।एक ऐसा अभियान जिसमे खुद को सुरक्षित रखने की सिख मुफ्त में मिल रही हो। देखा जाए तो भारत मे लोग सड़क दुर्घटना के भय से सीट बैल्ट्स और हैल्मेट्स का इस्तेमाल नही करते बल्कि सिर्फ और सिर्फ पुलिस के चालान से बचने के लिए ही करते है।कहा जाए तो इन सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग न करना ही ऐसे मामलों को और बढ़ावा देता है। 
विश्वबैंक के रिपोर्ट अनुसार,भारत में सड़क दुर्घटना हर चार मिनट में सड़क दुर्घटना और एक मौत जरूर होती है। वाकई यह एक हताहत होने वाली ख़बर और चर्चा है,जिसपर ध्यान देना जरूरी है।केस स्टडी के माध्यम सबसे ज्यादा भारत के सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन न करने और वाहन दुर्घटनाओं से प्रतिदिन मृत्यु दर में वृद्धि, जिनमें अधिकतर युवा शामिल है। यदि हम इस स्लोगन को याद कर ले कि -"गाड़ी को हैं ठीक से चलाना ,क्योंकि ये जिंदगी ना मिलेगी दुबारा"। जरा सोचिए सड़क पर लापरवाही करने से हम अपनी और दुसरों की जान को खतरे में डाल रहे। जिससे दुर्घटना पर शिकार हुए
व्यक्ति की या तो सड़क पर ही मौत हो जाती है या फिर
उसे गंभीर चोट के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ता है। सड़क सुरक्षा लोगों के लिए बहुत ही आवश्यक है।सरकार ने भले ही सड़क सुरक्षा बढ़ाने के लिए सुरक्षा के नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए सजा का प्रावधान रखा है,मगर इन कानुनों को और भी ज्यादा सख्त किया जाना चाहिए।शायद कुछ इस तरह कि- एक बार नियम तोड़ने पर चलान होना चाहिए और दुसरी बार तोड़ने पर लाईसेंस रद्द कर देना चाहिए। लेकिन सड़क सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है लोगों का नियमों के प्रति जागरूक होना और उनका महत्व समझकर उन्हें अपने जीवन में अपनाना।अक्सर देर हो जाने के डर से वाहन को तीव्र गति से चलाना ही महंगा पड़ जाता है शायद इसीलिए कहा जाता है कि " दुर्घटना से देरी भली "। पैदल यात्रियों को फूट पाथ पर ही चलना चाहिए और सड़क जैबरा क्रोसिंग पर ही पार करनी चाहिए। लोगों को वाहन की निर्धारित गति से ही वाहन को चलाना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर आसानी से गाड़ी को रोका जा सके। दुपहिया वाहनों पर हेल्मेट पहनना और गाड़ी में सीट बेल्ट लगाना कभी भी नहीं भूलना चाहिए। अब सड़क दुर्घटना के डमरू को थाम लेंगे या सोचेंगे या फिर इस पर भी निंदा करेंगे या राजनीति टिप्पणियों से बौछार करेंगे। एक तरफ हम हाईटेक होते जा रहे तो दूसरी ओर ऐसी गलतियों का भरमार लिए घूमते रहंगे जिससे तबाही का परिणाम जब सामने आएगा तो रूह कांप उठेगी। तो यह मान लिया जाए की भले ही हम आधुनिकता के भीड़ में पंगत की भाँति दौड़ लगा रहे लेकिन कहि ना कहि हमारी सोच हमारी धारणाएं पूर्णतः जन्म अभी तक नही ली है। यह मान लेना जरूरी है कि हमे जागरूक किया जा रहा कि " श्रीमान/श्रीमती" कृपया सड़क परिवहन, यातायात नियमों व लाइट्स का पालन करें।आए दिन होने वाले ये दर्दनाक हादसे भले ही हमे सिरहन क्यों ना छोड़ जाते हो लेकिन जब जिद्द का कलेवर नए अंदाज में गाड़ी चलाएगा तो क्या फर्क पड़ता है कोई तीसरा भी उस सड़क का हिस्सा बन जाए इसी सोच को बदलना है। क्योंकि सड़क सुरक्षा का उद्देश्य दुर्घटनाओं को सड़कों पर किसी भी दुर्घटना को कम करना है। यदि देखा जाए तो अधिकांश मौते बेतहाशा ड्राइविंग की वजह से होता हैं,जिसका मुख्य कारण गति है।
पंजाब केसरी लिखता है कि -" भारत एक ऐसा देश है जहां रक्षा व सुरक्षा की सबसे ज्यादा आवश्यकता अगर कहीं महसूस होती है तो वह सड़कों पर,क्योंकि सड़कों पर ज्यादा गति से चलोगे तो खुद आगे जाकर ठोकोगे, धीमे चलोगे तो पीछे से आकर कोई ठोक देगा।" इसलिए सड़कों पर नियमित गति के साथ स्वयं व दूसरों की रक्षा व सुरक्षा को ध्यान में रखकर चलना पड़ता है। पर क्या कोई ऐसे चलता भी है या यह मात्र कहने तक ही सीमित है।क्योंकि यदि हम देखें तो,अगर सड़कों पर फैले मौत के जाल का आंकड़ों के माध्यम से अध्ययन करें तो अंतर्राष्ट्रीय सड़क संगठन (आई.आर.एफ.) की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 12.5 लाख लोगों की प्रति वर्ष सड़क हादसों में मौत होती है। इसमें सबसे चिंताजनक यह है कि इसमें भारत की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ज्यादा है। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में 4,37,396 सड़क हादसे हुए, जिनमें 1,54,732 लोगों की जान गई और 4,39,262 लोग घायल हुए। इनमें 59.6 फीसदी सड़क दुर्घटनाओं का कारण तेज रफ्तार रही।वहीं ओवर स्पीडिंग की वजह से सड़क दुर्घटना में 86,241 लोगों की मौत हुई जबकि 2,71,581 लोग घायल हुए। इन सभी दुर्घटनाओं के पीछे शराब/मादक पदार्थों का इस्तेमाल, वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना, वाहनों में जरुरत से अधिक भीड़ होना और थकान आदि शामिल हैं।
आगे लिखता है कि- "एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दोपहिया वाहन और ट्रक ही हैं जो हमारे देश में करीब 40 प्रतिशत मौतों का कारण बनते हैं। भारत में दुनिया के विकसित देशों की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं के मामले तीन गुना अधिक हैं। इसलिए सड़क दुर्घटनाओं की वजह से मृत्यु दर को रोकने के लिए एकमात्र तरीका सुरक्षा के नियमों का पालन करना है। यह सड़क सुरक्षा माह इन दुर्घटनाओं की रोकथाम में मील का एक बड़ा पत्थर सिद्ध होगा यह तय है लेकिन तब भी किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है जागरूकता की। जन-जन तक सड़क सुरक्षा जागरूकता पहुंचाना एक लक्ष्य होना चाहिए तभी इस सड़क सुरक्षा माह विशेष जागरूकता अभियान को मनाने का औचित्य रह जाता है अन्यथा इस प्रकार के अनेक दिवस, सप्ताह व माह वर्षों से संचालित किए जा रहे हैं उनमें केवल खानापूर्ति की औपचारिकता मात्र निभाई जाती है, उससे अधिक कुछ नहीं। सड़क दुर्घटनाएं कोई प्राकृतिक घटनाएं नहीं हैं जो इन्हें रोका ही नहीं जा सकता,ये मानव द्वारा स्वयं निर्मित व स्वयं घटित घटनाएं हैं। जब प्रत्येक व्यक्ति चेतना से इस विषय पर अध्ययन करेगा तो वह जरूर सुरक्षा उपायों की ओर अग्रसर होगा। "तो मित्रों जान है प्यारा,तो सड़क सुरक्षा नियम जरूर अपनाना।"

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