ओ स्त्री! चुप्पी तोड़ो वक्त है अब खुल कर बोल


Blogger|Akanksha Srivastava




नारी वाक्यांश का बोध तो पूरी सृष्टि को है। एक ऐसा शब्द जिसने सम्पूर्ण सृष्टि को अपने मे समावेशित किया है। उसके बारे मे जितनी भी चर्चा की जाए,शायद उतना ही कम है। जितना ही लिखा जाए उतना ही कम है। एक ऐसी गुत्थी जो सुलझी हुई जरूर है मगर आए दिन किसी न किसी जाल में उसे पिरोया जाता हैं। कभी उसके चरित्र को लेकर कभी उसके ओहदे को लेकर, कभी उसे एक स्त्री होने पर ही एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाता हैं। एक स्त्री जब जन्म लेती है तो उसकी व्यथा वही से शुरू हो जाती हैं। कहने को है कि एक स्त्री इसी समाज का ही एक हिस्सा है या स्पष्ट लहज़े में कहूँ तो इस जगत की जननी है स्त्री! लेकिन जब एक स्त्री का जन्म होता है तब लोग कोसने लगते है कि अरे लड़की भई है,इन सब में सबसे पहले शिकंजे में कसी जाती है माँ। जिसे हर तरीके से प्रताड़ित किया जाता हैं।

21 वी के दशक में भी जहां बेटी बचाओ ,सेव द गर्ल की बात की जाती हो तो देश अभी भी उन्नति पर नही बल्कि हमे कई सदी के पीछे की सोच पर ला ठहराता है। जहां हम उम्मीद करते है कि एक स्त्री लज्जा के गहना को धारण किये,हर क्षेत्र में परचम लहराए,एक नई बुलन्दी की ओर अग्रसर हो। विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग हो,तमाम चुनोतियाँ स्वीकार कर भी मुस्कान की कमान से पूरी सृष्टि को महकाए। कभी माँ बन ,कभी बहन बन,कभी बेटी बन कर हर किसी के दिल पर छाए।एक जर्जर गृहस्थी को अपने कलकुलेटर के दिमाग से चलाने वाली भी एक स्त्री ही है। बहुत ही पुरानी एक कहावत है कि "हर सफल पुरूष के पीछे एक स्त्री का हाथ है। "

क्या वाकई आप भी मानते हो कि एक स्त्री आपके जीवन के सफलता के लिए कितनी मायने हैं। जवाब तो ये है कि 60 प्रतिशत लोग ही एक स्त्री के सम्मान की कद्र करते है। अन्यथा क्या फर्क पड़ता है किसी स्त्री को भरे बाजार में फब्तियां कसना,छेड़छाड़ करना, टॉर्चर करना,सोशल साइट्स पर तुच्छ कमेंट व मैसेज करना। कौन सी अपने घर की महिला है जो उसका सम्मान घट जाएगा तो हम समाज मे किसी को मुँह दिखाने के लायक ना रहेंगे। यही तो वो वाक्य है जो हम तब सोचते है जब हमारी बेटी पर,हमारे घर की स्त्री पर आँच आती हैं अन्यथा क्या फर्क पड़ता हैं। फर्क पड़ता है तो सिर्फ एक स्त्री को जिसे चन्द मिनटों में चरित्र प्रमाण पत्र मिल जाता है। क्या कभी किसी ने सोचा है कि एक स्त्री गर्भ काल से लेकर जीवन के अंत तक संघर्षों की ही सुई में घूमती रहती है। कभी ना ही उफ़्फ़फ़ करती है, ना ही कभी शिकायत। देखा जाए तो समाज में एक स्त्री की जिम्मेदारी बड़ी और काफी महत्वपूर्ण कड़ी से जुड़ी हुई है। एक ओर जहां परिवार को जोड़कर रखना,अपने जिम्मेदारी पर खरे उतरना,घर हो या दफ्तर हर जगह अपनी एक अलग पहचान बनाना। उसे बखूबी निभाना। लेकिन सवाल तो ये उठता है कि क्या ये एक स्त्री के लिए ही लिखा गया है?आखिर पुरूष प्रधान देश मे स्त्रियों से ही उम्मीद की लालसा क्यों?क्या वाकई समाज मे महिलाएं सुरक्षित है? हालात ये है कि हर रोज महिलाओं के लिए सेफ्टी एंड सिक्योरिटी का एक्ट भारत मे लागू किया जाता है लेकिन शायद ही ये कारगार है।

आए दिन के अखबार चैनल सोशल साइट्स पर महिलाओं संबंधित कई खबरे चलती रहती है,कभी छेड़छाड़ की वारदात, कभी दहेज उत्पीड़न, कभी एसिड अटैक।अक्सर ही सुनने को मिलता है कि महिलाओं पर तेजाब फेक दिया जाता है ऐसा कब होता है जब छेड़छाड़ का आरोप हो।जब उनकी मर्जी का ना चल पाए तो सरेआम खुले बाजार में तेजाब फेंक कर जहां उसकी सुंदरता को खराब किया जाता है ये सवाल उन्ही के लिए है यदि आपकी घर की महिला के साथ ऐसा अपराध हो तो क्या आप चुप बैठेंगे।जब खुले बाजार में एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति औरतों महिलाओं लड़कियों को देखते ही खुद को कम उम्र का महसूस कर खुद को सोलह साल का मान एक महिला के साथ जब तुच्छ गन्दे इशारे करता है।भीड़भाड़ वाले जगहों में उसे टटोलने की कोशिश करता है तो क्या आप चुप बैठेंगे।ज्यादा नही इतना ही कहूंगी मैं भी एक समाज का हिस्सा हूँ, यदि मुझे टटोलने से तुम्हे संतुष्टि प्राप्त होती हैं तो तुम्हारे भीतर पुरुषार्थ नही हैवानियत पनप रही है। मैं समाज से पूछना चाहूंगी कहा गयी आपकी जासूसी क्या आंख मूंद लिया आप सब ने। हर छोटी सी छोटी बात का जायजा रखने वाला समाज आखिर क्यों नही इस ओर रुख मोड़ता। तमाम संस्कृतियो को समझाने वाला समाज आखिर क्यों नही इन पुरुष वर्ग को संस्कार सीखता। बेटी हो बड़ो से बहस करना ठीक नही। अरे कुछ मान सम्मान हमारा भी है कपड़े तो ठीक ठाक पहनो चार लोग देखेंगे तो बतंगड़ बनाएंगे।क्यों कौन है वो जो महिलाओं के कपड़ो पर नजर रख सकते है लेकिन इस समाज मे हो रहे हैवानो पर नही। क्या एक 21 वी दशक की स्त्री खुद को पुराने दौर में ले जाए तो क्या ये आए दिन होने वाले अपराध थम जाएंगे? शायद नही।क्योंकि एक महिला ना तो उस सदी में सुरक्षित थी ना ही इस सदी में। उन दौरान भी गांवों की महिलाएं सुरक्षित नही थी। उन दौर में भी छेड़छाड़, रेप हुआ करते थे।बस फर्क इतना है कि वो घुट कर सह ली,ना तो टीवी अखबारों को पता चला ना ही समाज को।आज भी कई ऐसे गांव है जहां 60 प्रतिशत महिलाएं खुले में शौच जाया करती है जो कही ना कही सही नही है। पहला तो सुरक्षा को लेकर दूसरा संक्रमण को लेकर। जहां सरकार खुले में शौच करने की प्रथा पर रोक लगा रही।वही लोग अपने जिद्दी स्वभाव से एक शौचालय तक का निर्माण नही करने देती क्यों? आखिर क्यों है ऐसा क्या एक महिला खुले आसमान के नीचे झाड़ी के आड़ में बैठती है तो कहा जाती है आपकी लज्जा जो उसे जीवन भर सिखाया जाता है। कहा जाते है आपके संस्कार। घर मे शौच का निर्माण होना बेहद जरूरी है।शौचालय महिलाओं की सुरक्षा व आत्मसम्मान से जुड़ा है।आज के दौर में महिला सुरक्षा एक विशेष मुहिम है। लेकिन कही ना कहीं नाजायज मनमानी चल रही क्यों क्योंकि हमारा क़ानून ही लचीला है। हमारे कानून में ही कमियां है।एक वक़्त था जब लोग कुछ भी करने से पहले कानून से ज्यादा समाज के भय से डरते थे,लेकिन अब ना तो कानून की चलती है ना ही समाज की। क्योंकि एक ऐसा कानून तो बनने से रहा जिससे एक पुरुष वर्ग सहमे नही काँपे। इसीलिए महिला सुरक्षा के लिए महिलाओं को ही चुप्पी तोड़ना होगा। हर महिला को अपनी आवाज बुलंद करनी होगी।वक़्त पर ही ऐसे लोगो को उसका जवाब सीखना होगा। क्योंकि वक़्त गया जब महिला चार लोग की सोच कर खुद प्रताड़ित हुआ करती थी। एक कदम खुद की ओर बढ़ाए जिससे आप खुद सुरक्षित रहे।

हम हर रोज, हर रोज एक क़दम उचाईयों को छूने का प्रयास करते है ,लेकिन बहुत कम ही क़दम.. उन उचाईयों के राह पर जा पाते है।मैं बात कर रही हू ई - दुनिया की! जो देखने मे किसी जन्नत से कम नही। अरे हँसिये मत,सच में ई दुनिया ...जो आज हमें कितना फ़ास्ट फ़ास्ट बनाने में लगा हुआ है न ,वरना हम आप जैसे आलसी चार काम करने पे थक जाते थे।लेकिन देखिए इसका जादू,हम लाख थके हुए हो मगर बिन ई दुनिया के मन ही नही लगता। हाल ही में मैंने सोशल साइट्स पर एक डायलॉग पढ़ा उस समय मुझे बेहद हँसी आई,बाद में समझ आया,कि आधा आना सच है। उसने लिखा- "गर्लफ्रैंड से ज्यादा जरूरी इंटरनेट हो गया है"मतलब इनके नज़रिए से ई दुनिया के आगे गर्लफ्रैंड ज्यादा जरूरी नही,इस पर मैंने लोगो के तथ्य जानने चाहें,तब कुछ इस तरह बात सामने आई।यार आज कल लोगो को मस्ती मसाला चाहिए, न कि जीवन भर की क़ैद! ये ऐसी जगह है जहाँ एक नही हजारों अप्सरा मिल सकती है बस थोड़ा इम्प्रेशन होना चाहिये। ख़ैर मैं भी सोचने लगी,कि वाकई आज जो अपने न होते हुए भी अपने बन रहे ये हितैषी कितनी सही है हम आपके जीवन पर?आपके इस दुनिया के दोस्त आपकी हर बात उसी तरह जानने में जुट जाते है जिस तरह चट मांगनी,झट ब्याह हो जाता हैं।

ये गलमरैसे चकाचौंध,किसी फिल्मी दुनिया के रील से कम नही। इंटरनेट की दुनिया से हम कुछ यूं लबरेज़ हो गए हैं कि हम घर हो या बाहर कोई फ़र्क नही पड़ता। देखा जाए तो इंटरनेट के जन्मदाता कि बात भी सच होने में जुटी हुई है ,उन्होंने कहा था कि आने वाले पीढ़ी ई दुनिया से तालुक रखेगी। सबकुछ बहुत तेज रहेगा,बस इसकी सही रफ़्तार में वरना आंधी में तो लाखों का सैलाब उमड़ पड़ता हैं।
शायद आज वही हो रहा।इंटरनेट की दुनिया ने जहाँ तेजी से तरक़्क़ी की ओर हाथ बढ़ाया,नए नए आयामो से लबरेज़ किया। वही दूसरा कदम जघन्य अपराधों की ओर जहां यौन शोषण से लेकर बाल श्रम,बंधुआ मजदूरी,बाल मानव तस्करी,अनेको शोषण जैसे मामलों को बढ़ावा मिल रहा। आए दिन बढ़ते तेजी से अपराध,को बढ़ावा दे रहा सोशल साइट्स,जहाँ वो हर चीज खुलेआम परसी जा रही जो शायद मायने भी नही रखता। ई दुनिया यानी इंटरनेट जहाँ छोटे से लेकर बड़े तक दिनों रात जुड़े हुए हैं। कोई पढ़ाई के मामले से तो कोई अपराध के मामले से। मैं ये नही कह रही कि लोग अपराध के लिए इंटरनेट से लबरेज़ है, मगर यहाँ मिलने वाली सामग्री अपराध को बढ़ावा दे रहा। जिसे न तो सरकार रोक रही , न क़ानून।

इंटरनेट को जहाँ ज्ञान का भंडार कहते है, लोग उसे गुरु के नाम से पुकारते है उसी भंडार में अपराध भी शामिल हैं। कहना शायद गलत लगे आपको लेकिन आधी आबादी,ज्ञान कम ,गलत ज्ञान कि ओर ज्यादा बढ़ रही। इसमें उनकी नही इस दुनिया को तेजी से बढ़ाने वालो की गलती है। यदि अपराध को रोकना है तो इस ई दुनिया के पैतरे से सतर्क होना बेहद जरूरी है। जिन बच्चो पर ज्ञान की बारिश होनी चाहिए,उन पर यूट्यूब जैसे साइट्स पर अपराध से जुड़े ज्ञान खुद ब खुद सामने आ जाते है।कोमल मस्तिष्क वाले ये छोटे बच्चे,जब इन चीजों को देखते हैं तो उनके मन मस्तिष्क पर एक गलत प्रभाव पड़ता हैं। कभी कभी कुछ बच्चे उसे दुबारा खोलने की चाह रखते हैं,बार बार उन चीजों को देखने मे दिलचस्पी रखते है जो शायद उनके उम्र लिए जरूरी नही।अगर देखा जाए तो हमारे बच्चे आज घनी असुरक्षा के बीच है। जिसे हम आपको रोकना है। अगर मन के सवाल को देखा जाए तो ,ई दुनिया में बच्चों के असुरक्षा का मतलब आखिर है क्या?देखा जाए तो इस ई दुनिया मे बच्चें कौन है?आख़िर होता क्या है? कैसे ये शोषण को शामिल कर रहा? किस तरह से इस ज्ञानिदाता के यहाँ अपराध पनप रहा?

दरसल ,ई दुनिया सोशल नेटवर्किंग के चैन से हम आप को बड़ी ही तेजी से एक सिकड़ी में बंधता चला जाता है। एक के बाद एक,जैसे जब फेसबुक आया तो पहले लोग उसे सतर्क हुए,ओर अपनी गलत इन्फॉर्मेशन के साथ इस दुनिया मे दाखिल लिया,कुछ ने सही इन्फॉर्मेशन के साथ दाखिल लिया।
दरसल ,फ़ेसबुकिया के नाम से प्रचलित ये साइट्स ने लोगो को एक हिदायत के रूप में एडमिशन देना शुरू किया। जिसमें उम्र की भी हिदायत रखी गयी। यानी 13 साल के उम्र में ही इसका उपयोग कर सकते है। लेकिन ये सिर्फ़फेसबुक ही नही बल्कि अन्य मंच भी यही कहते है जैसे गूगल प्लस,वायबर,व्हाट्सएप,स्नेप चैट,आजकल हाल ही में तेजी से बढ़ता विगों जो कि एक ओर जहाँ बच्चो को उनके हुनर दिखाने का मौका दे रहा,वही वो उन वीडियो के माध्यम तमाम साइट्स पर भेज कर लाखो पैसे भी कमा रहा। कही कही ये जितना सही उतना ही गलत भी है।वीगो जहाँ छोटे से छोटे बच्चे व बड़े से बड़े लोग सीधे तौर पर अपनी अडेन्टिटी तो जरूर छिपा रहे,मगर चेहरा पूरी दुनिया के सामने आ रहा, ख्याल उन्हें ये नही की वो जो भी कला प्रस्तुत कर रहे वो सही जगह है या गलत? उनके ये वीडियो कितने सुरक्षित है या असुरक्षित?

फ़ेसबुकिया का भी वही हाल है जहाँ हर कोई किसी से कम नही रहना चाहता। कोई अडेन्टिटी छुपाता है तो कोई ,गलत इन्फो। मगर वही कुछ लोग इतने दीवाने है इसके की वो रोजमर्रा की हर छोटी बड़ी बात को इस दुनिया के आगे परस रहे,वो ये भूल गए है कि आज के समय में बढ़ते अपराध को हम और आपने ही बढ़ावा दिया है।अपनी छोटी सी बात हो या ,फेललिंग्स, या खुशियों का माहौल हम सबकुछ खुलकर शेयर कर रहे। नए दोस्तो से दोस्ती करने का मौका हमें इन्ही तमाम साइट्स ने ही दी। हम अनगिनत मित्र बना जरूर सकते है,मगर सही कौन गलत कौन आप ये समझ कर भी नही समझना चाहतें?अगर समाज और कानून की बात की जाए तो,हमारी सामाजिक न्याय कानून व्यवस्था क्या कहती है आप भी जानिए?उनका कहना है कि इस तथाकथित लहरों में डूबते लोगो को कैसे बचाया जाए,इसका कोई भी जोड़ निकल नही पा रहा। लोग इस कदर घुल गए है कि उन्हें ये नही समझ की हमारे जीवन को किसी भयावह वायरस ने जकड़ लिया है।

वे कहते है कि ये चुनौतीपूर्ण विषय है, एक तरफ जहाँ लोग समाज से दूर हो रहे वही दूसरे ओर अपने घर परिवार से। उपकरण बढ़े लेकिन उसे ज्यादा बढ़ा अकेलापन। मशीनी उपकरण का महत्व चरम सीमा पर है । आज सीखने का माध्यम संवाद नही ,तकनीक है। शायद यही तकनीक शोषण का मुख्य जरिया है।आज के वर्किंग पैरेंट्स इसमें खुश है कि चलो बच्चा गलत काम न करके मोबाइल ,कंप्यूटर,इंटरनेट में व्यस्त हैं। लेकिन उन्होंने ये नही चेक किया कि उस उपकरण से वो क्या सिख रहे, क्या पढ़ रहे,किसे दोस्ती कर रहे। जो कल तक खेल कूद का हिस्सा होने वाले आज चार दिवारी के बीच एक उपकरण से चिपक गया वो कितना सही कितना गलत। आज महज आठ साल की उम्र में ही बच्चे इंटरनेट पे बैठे हुए है चाहे वो पढ़ाई सम्बंधित हो,खेल संबंधित हो,या शोषण। ये जान शायद हैरानी हो मगर अध्ययन के मुताबिक , आज 100 में से 50% बच्चे इंटरनेट शोषण के शिकार हो रहे। कितने तो अपने माता पिता से कहते है,कितने नही। आज के बच्चे अपनी दुनिया को कुछ यूं जोड़ के रखे हैं,जिसमे माता पिता का कही भी रोल नही।

यहाँ ऑनलाइन शोषण की बात की जाए तो ,आज देश बढ़ता हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार,छेड़छाड़,बाल तस्करी,तेजी से पनप रहा।हम आप इतने खो गए है कि इस शोषण के शिकार कब हो गए अंदाजा ही नही।वेब वाइस सर्वे के मुताबिक, 54.8% बच्चें अपने इंटरनेट खातों को के पासवर्ड को दोस्तो से साझा करते हैं। जिनमे से कुछ ऐसे मित्र होते है,जो उनके इसी तकनीकी माध्यम से दोस्ती होती हैं। अब आप ही सोचिए कितना सुरक्षित है ये?जिसमे से कितने लोगों की आई डी हैक हो जाती है,जिसका उन्हें अंदाजा भी नही लगता। आपने अक्सर देखा होगा कि पोर्नोग्राफी साइट्स कभी भी गूगल पर मौजूद हो जाती हैं। जिसपे न तो कभी सरकार ने रोक लगाई न ही गूगल ने।

ये एक ऐसी साइट्स है जहाँ बच्चो के मन को सीधे दूषित कर रही। आप खुद सोचे कि हम अपने बच्चो को घण्टो इंटरनेट मुहैया कराते है ,लेकिन उन्ही बीच अगर ये पोनोग्राफी साइट्स का बीच मे खुल जाना कितना सही है?मैं ये नही कहती कि उन्हें इसे दूर करे,मगर मैं ये कहती हूं कि ऐसी अवहेलना साइट्स पे रोक न सही कम से कम कोई नियम तो जरूर बने जिससे जिसे देखना है वो देखे,बेफिजुली न बीच मे खुले। हाल ही में सरकार ने गूगल को आधर से जोड़ दिया,ओर लोगो की डिटेल निकलना शुरू किया कि लोग क्या क्या यूज़ कर रहे,क्या चला रहे,क्या देख रहे, उनकी प्राइवेसी को झांकने ताकने से बेहतर था कि अगर वो खुद इन साइट्स पे रोक लगाते तो शायद आए दिन यौन शोषण जैसे मामले कम हो जाते।

ऐसे साइट्स पर रोक लगने चाहिए,क्योंकि किसी की प्राइवेसी चैट से हिंसा नही रुकेगा। क्योंकि यहाँ वो अपनी सहमति से उसे जुड़ रहा,लेकिन जो राह चलते हो रहा दिनभर कितने बेटियों के साथ शोषण हो रहा वहाँ उसकी सहमति नही। ये एक अपराध है,जिसे रोकने के लिए हमे इन साइट्स को रोकना होगा। फेसबुक जैसे साइट्स पर लोग जादू देखने को तैयार है,उसमें बच्चो से लेकर व्यस्क तक जादू देख रहे। उस जादू में खुलेआम पोर्नोग्राफी परोसा जा रहा। अब आप बताइए क्या ये सही है? सवाल ये है कि ऐसे साइट्स को ऐसे फेसबुक जैसी साइट्स पर यूट्यूब चैनेलो पर कैसे आने दिया जा रहा?इसपे रोक क्यों नही?

ये तो हमारे मन के सवाल है,लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भारत सरकार क्या कहती है वो देखिए.....उनका कहना है कि कई कारणों से हम इंटरनेट के जरिए पोर्नोग्राफी को नही रोक सकते?क्योंकि कई साइट्स के सर्वर देश मे है ही नही,अब ये कितना सच कितना झूठ हम आप नही जानते?
लेकिन सरकार ने 857 पोर्नोग्राफी साइट्स पर रोक लगाने के आदेश दिए,जो कि खुलेआम बच्चो को ऐसे सामग्री प्रसारित कर रही थी। लेकिन सवाल ये है कि क्या सभी पोर्नोग्राफी साइट्स पे प्रतिबंध लगा? क्या जरूरी है इंटरनेट पर ऐसे साइट्स? जो खुलेआम व्यवसायीकरण ओर हिंसा को बढ़ावा दे रहे? क्यों नही बाल वैश्यावृत्ति ,बच्चों के खरीद फरखोत पर ,बाल पोर्नोग्राफी पर रोक लगाया जा रहा? गूगल के एक शोध में ये पाया गया कि 10% में से 7% सामग्री पोर्नोग्राफी से जुड़ी हुई हैं। जिसमें 8 करोड़ वेबसाइट पोर्नोग्राफी के विज्ञापन को सीधा परोस रहा। बड़ी बात यह है कि महज एक साल में 80 अरब वेबसाइट पर पोर्न वीडियो देखें जाते हैं,जो सीधा सीधा शोषण से जुड़ता है?अब आप ही सोचिए कि इंटरनेट जो हमारे जीवन के एक ओर तरक्की से जुड़ रहा ,वही दूसरी ओर आपराधिक शोषण की ओर तेजी से पनप रहा। हम कितने सुरक्षित है घर के चार दिवारी के भीतर ,जहाँ खुलेआम इंटरनेट के माध्यम शोषण हो रहा। लोग खुलेआम अपनी न्यूडिटी को परस रहे जो एक अपराध को हौंसला दे रहा।

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