दूर दूर से रिश्ते



उफ़्फ़ ये पति!
बातें तो ऐसे करते है मानों चाँद पर पहुँच कर आए हो। रूचि ने किचन में बर्तन धोते हुए बड़बड़ाया;कामवाली बाई कमली मुस्कुराते हुए रूचि को देखने लगी और पूछ बैठी.."अरे का हुआ मैडम, आज सुबह सुबह इतना क्यों नाराज होती साहब पे। रुचि ने कमली को तरेरती हुई नजरों से देखा,तुम्हे बड़ी फिक्र है साहब की? खुद को रूचि सम्भालते हुए बोली- कल रात ही मेरे और तन्मय में बेफ़िजूली लपट लग गयी... फ़िर क्या पतिदेव का कहना था कि न जाने तुम मेरे तकदीर में कहा से मिल गयी ;  नही तो मेरे लिए तो रिश्ते दूर-दूर से आते थे। ये सुनते ही मेरे आँखों के भौह चढ़ गए और फिर क्या सुलग गयी जलती हुए मशाल की तरह ; हम्ममम्मममम्ममम्म बड़े आए दायर दूर-दूर से रिश्ते वाले। इतने ही दूर दूर के रिश्ते आते थे तो गले मे मुझ सर्पिणी को क्यों टांग लिए बोलो.....?तन्मय अपनी ही तन्मयता में ओतप्रोत हो टीवी देखने में मगन थे।मैंने भी खीजते हुए कहा- जवाब आखिर आए भी तो आए कहा से,दूर दूर से रिश्ते तो आते ही होंगे क्योंकि पास वाले तुम्हारे लक्षण जो ब-ख़ूबी से जानते हैं! कमली रूचि की इतनी सी बात सुनते ही हँस पड़ी,फ़िर.....।

रूचि- फिर क्या ?मैने ज्यो बड़बड़ाते हुए पलंग की टेबललाइट बन्द कि, की तभी तन्मय ने आहिस्ता से मुझे पीछे से पकड़ कर कहा; आए - हाए मेरी सर्पिणी मेरे गले के फंदे में जो तुम्हें लटकना था तो भला दूर दूर का रिश्ता कैसे पास कर लेता।


अब पतिदेव को कौन समझाएं,की रुचि को तो मना  लिया ,लेकिन रुचि के दिल को हर बार ये बात खटकती है की हर कुछ दिन पे ये दूर -दूर वाला रिश्ता कहा से आ टपक पड़ता है।


कमली ने रूचि को छेड़ते हुए कहा; अरे तब साहब का रिएक्शन कैसा रहा मैडम?साहब का तो पता नहीं, मगर मैने भी हँसते हुए तन्मय को जवाब दे ही दिया, मेरे इतने करीब आने का टैक्स लगता हैं। तन्मय मेरी बात सुनते ही हँस पड़े बोले,हम टैक्स देने को तैयार है मैडम आप जो भी कहे। आख़िर आप तो जानेजहा है हमारी,आपकी हर बात सराखो पे। मैंने भी उनके ऊपर भड़ास निकालते हुए कहा- ये दूर दूर वाला रिश्ता हर रोज दस साल के रिश्ते में क्यों टपक पड़ता है तन्मय।

तन्मय ने वापस से अपनी उसी तन्मयता से मुझे मना लिया ,मैं तो अपनी सर्पनी को छेड़ता हु बस। वरना दिल तो अभी भी जवान है। ये सुनते ही मुझे तो लगा मानो काटो तो खून नही,तन्मय। मैं भी उन्हें झटक कर उठी और बालकनी में खड़ी हो गयी। कुछ मिनटों में तन्मय मेरे बहुत करीब खड़े हुए थे,पीछे से कानों को चूमते हुए कहा, मुझे तुम जो मिलने वाली थी तो भला कोई और क्यों??मैंने भी मुँह बिचकाते हुए कहा-क्या फ़र्क पड़ता हैं -जब हर कुछ रोज पे दूर दूर वाले लोग याद आ जाएं। तन्मय ने मुझे गोदी में उठाते हुए कहा-जानेमन तुम सचमुच मेरी सर्पनी हो तुम बिन मैं अधूरा हूं।

तन्मय और रुचि जैसे न जाने कितने कपल है।जिनमे इसी तरह की टकराव आए दिन होती ही रहती है,मगर कहते है न जहाँ नरम है तो वहाँ गर्म भी है। ठीक उसी तरह रिश्ते भी होते है ,कभी टकराव कभी प्यार,होना लाज़मी है,लेकिन रिश्ते को मजबूती तभी मिलती है जब गाड़ी की दोनों पहिया एक दूसरे का ख्याल रखें।


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