चमत्कारिय कुण्ड से पुत्र रत्न की प्राप्ति

हे भगवान,


एक चौका देने वाला रहस्य ....."एक ऐसा कुण्ड जिससे होती है पुत्र रत्न की प्राप्ति!" ये कैसे हो सकता है?क्या मज़ाक है ये?क्या आपने कभी देखा है या सुना है ,ऐसे कुण्ड के बारे में? नही न.....आप भी चौक गए न मै भी इसी तरह,मगर सच का सच और पानी का पानी करने मैं निकल पड़ी इसी आस्था को टटोलने काशी के भदैनी स्थित लोलार्क कुण्ड.... !


     एक लम्बी सी कतार वाली भीड़ जिसमे शामिल विभिन्न जगहों से आए शामिल जोड़ें का समूह।आधी रात से ही इस कुण्ड में स्नान करने के लिए लम्बी लम्बी कतारों में बिन अन्न-जल ग्रहण किये शामिल है ये लोग।


    ये देखकर मैं पूरी तरह चौक गयी कि क्या इस सदी में भी लोग अंधविश्वास पर ही चल रहे? जहाँ विज्ञान अपनी छवि से क्या क्या बदल दे रहा वही उसी सदी में ऐसे लोग जो...खैर आस्था को न तो टटोल सकती हूं न ही उसपे हस्तक्षेप क्योंकि कुछ न कुछ तो रहस्य जरूर है।


आजकल आस्था का अस्तित्व कुछ यूं हो गया है कि इसे हम अंधविश्वास का नाम देकर भी नही दे सकते। क्योंकि किसी को ठेस पहुंचाना हमारा कर्तव्य नही।


आपको बता दे कि ,यहाँ किसी ढ़ोंगी बाबा का नही बल्कि स्वयंभू बाबा महादेव की पूजा की जाती है जिन्हें लोलारकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता हैं।  हर वर्ष काशी के इस लक्खा मेले में शुमार देश के विभिन्न हिस्सों से दंपति स्नान के लिए पहुंचते हैं।


संतान प्राप्ति और आरोग्य की कामना के लिए लगाते हैं डुबकी


काशी में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि इस विशेष तिथि पर लोलार्क कुण्ड में स्नान कर सूर्यदेव का पूजन कर बाबा लोलारकेश्वर महादेव का आशीर्वाद लेने से संतान प्राप्ति और आरोग्य की प्राप्ति होती है।मन्दिर के पुजारी अवशेष जी बताते है कि  पश्चिम बंगाल स्थित कूच विहार स्टेट के एक राजा चर्मरोग से पीड़ित और निसंतान थे। यहां स्नान करने से न केवल उनका चर्मरोग ठीक हुआ बल्कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति भी हुई।इससे प्रशन्न हो  उन्होंने इस कुंड का निर्माण सोने की ऊंट से कराया परन्तु शाशको ने सोने को निकाल लिया।


तभी से

मान्यता है कि इस दिन लोलार्क कुंड में स्नान-दान, फल त्याग व लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन से व्रतियों की गोद भगवान सूर्य की कृपा से अवश्य भरती है। काशी खंड के 32वें अध्याय में भी वर्णित है कि कुंड स्थित मंदिर में माता पार्वती ने शिवलिंग की पूजा की थी। धारित मान्यता है कि भगवान सूर्य की पहली लाल किरण इस स्थल पर पड़ी थी, इसे सूर्य लोल कहा गया। सूर्य का चक्र भी इसी कुंड में गिरा था।

ये सब सुन मैंने सोचा कि पब्लिक क्या सोचती है या क्या सोच कर आई है थोड़ा वो भी जानते चले.....सिर पर गठरी कमर कंधे पर झोला टांगे हमारी मुलाकात भीड़ में एक अम्मा से हुई अम्मा ने बताया कि

इस कुंड में स्नान कर अनेक दंपतियों ने पुत्र सुख पाया है। स्वयं मुझे भी कोई सन्तान नही थी,तो मेरी सास ने ही मुझे यहाँ 3-4 बार स्नान कराया मेरी गोद प्रभु ने भर दी। आज मैं अपनी बेटी को लाई हूँ क्योंकि इसे बच्चे नही हो रहे शायद भगवान की कृपादृष्टि मेरी बेटी पर पड़ जाएं। थोड़ा और इंटरैक्ट होने के लिए मैं भीड़ में और घुसी उसी भीड़ में मेरी मुलाकात एक इंजीनियर से हो गयी जो कि झारखंड के निवासी है उन्होंने बताया कि बहुत कुछ किया हमने एमजीआर सब जगह से आश टूट गयी इस बार हम इसलिए आए है कि शायद हमारी भी पुकार भगवान तक पहुँच जाएं। मैनै उनसे जानना चाहा कि क्या आपको नही लगता यह अंधविश्वास भी हो सकता है, उन्होंने बात को काटते हुए कहा,यदि ऐसा होता तो शायद यहाँ इतना बड़ा समूह इक्कठा न होता।


वाक़ई आस्था के आगे हर व्यक्ति नतमस्तक है यह देख कर आज यकीन हो रहा कि भगवान है अभी भी तभी तो हम आप हर विपत्ति से भी जूझ सकते हैं।
                
 

ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने वाले निरूसंतान दंपति स्नान के बाद कपड़े कुंड में ही त्याग देते हैं।शरीर पे रहने वाला कोई भी आभूषण हो वो सब यही त्याग कर जाना होता हैं। इस दौरान महिलाएं श्रृंगार आदि की सामग्री भी वहीं छोड़ती हैं। आधी रात से शुरू होता है लोलार्क कुंड में सविधि पूजा व आरती के बाद स्नान प्रारंभ। इस दौरान कुंड में स्नान किए दंपत्तियों द्वारा छोड़े गए भारी मात्रा में कपड़ें व आभूषण भी सीढ़ियों पर ही जमा होते गये।

पूरी तरह मुस्तैद प्रशासन के साथ ही साथ, एनडीआरएफ की टीम भी नजऱ आईं ,श्रद्धालुओं के साथ कोई हादसा से अनहोनी न होने पाएं,वही भीड़ को काबू करने और व्यवस्था बनाने के लिए कुंड में स्नान करने के लिए दो तरफ से लाइन लगी थी। एक लाइन मुमुक्ष भवन से लगी थी तो वहीं दूसरी लाइन भदैनी, सोनापुरा की ओर से लगी थी। प्रशासन ने स्नान स्थल से लेकर बाहर सड़क तक और एक तरफ सोनारपुरा और दूसरी ओर मुमुक्षु भवन तक बैरिकेडिंग करके भीड़ नियंत्रित करने का भी काम किया। प्रशासन द्वारा मिली जानकारी से लगभग दो लाख लोगों  ने लगाई आस्था की डुबकी।  


तो ये थी हमारी आज की यात्रा डायरी आपको कैसी लगी जरूर बताएं। फिर मिलेंगे एक नए अनुभव के साथ...मुझ घुमक्कड़ी के साथ एक नई यात्रा के लिए तब तक के लिए नमस्कार!

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