कहानियां जिनमें आप मिलते हैं ख़ुद से ! _पार्ट 1


महसूस किया होगा न कभी आपने भी ......
गमों को छुपाए, रोज -जोर से हँसते हुए , ताकि ग़मो के दरवाजों की सिटकनिया कही खुल न जाए,भावनाओं के झोंके में।
         लेकिन ज़नाब दिखावे की खुशी में बहुत मशक्क़त होती हैं। मतलब सबकुछ ठीक परफेक्ट हो,कुछ भी ज़रा भी उन्नीस-बीस न हो। लेकिन जैसा हम चाहते है सोचते है वैसा होता ही कहा हैं?

जिंदगी की बदलती तस्वीर !
आएदिन की पीछा करती मुसीबतें बुरी साये की तरह काले जादू से भी ज्यादा मजबूत हुआ करती हैं। फिर भी उन सभी मुसीबतों को करारा जवाब देने का भरसक प्रयास करती हूं ताकि सबकुछ मजबूत रहें।

लेकिन कहावत तो सुना ही होगा आपने गम छुपाए नही छुपता, तो मैं भी कितनी ही टेबलेट क्यों न ले लू झूठी खुशी की गम सीने में तो चुभते है,मगर जीवन के मोड़ पर खड़े लोगो को दुःख नजर न आए उसी दर्द को छिपाए फिरती हूं।

मेरा और रूपेश का रिश्ता भी अब पहले जैसा नही रहा!एक खुशनुमा परिवार में रोज की झिकझिक लाज़मी हो गयीं। वज़ह थी तो बड़ी मगर क्या वो वज़ह की कारण अकेले सिर्फ़ मैं थीं???

ग्यारह साल हो गए मेरे और रूपेश में ठीक से बातचीत हुए,मैं अकेले परिवार की छत को मजबूत बनाने में खोखली होती गयीं। एक छोटी सी बात ने कुछ यूं मोड़ दिया मुझें जहां मैं और मेरे बच्चें अकेले रह गए। शायद यही वजह रही कि खुशियों के आगमन के बजाय गम के आगमन की आवाजाही जिंदगी में ज्यादा बढ़ती गयीं।

कितनी अजीब बात है न लोग कहते है माँ बाप किसमत जो लिखते बड़ा ही सोच समझ कर लिखतें है लेकिन क्या मेरे  पिता जी से कुछ भूल हुई ????? या बड़ा अच्छा परिवार, जमीन ज़ायदाद-गाड़ी- घोड़ा, सबकुछ ठीक एक दम परफेक्ट कहि भी किसी चीज की कमी नहीं। लड़का भी देखने मे स्मार्ट!
        मगर बाबूजी ने कहा ऐसा सोचा होगा कि उनकी लाडली के जीवन मे फ़क़ीर बनाना ही लिखा था। शादी के  शुरुआती दौर में सबकुछ खुशनुमा रहा मूवी डिनर प्रेम स्नेह बच्चो के साथ पिकनिक ऐसा नही की तब जिम्मेदारीया नही थी,जिम्मेदारियां थी बस अचानक से आए तूफ़ान में सबकुछ एक वक्त में ही डूब गया।
                
               न समुद्र रहा न सपनों के जहाज़! बस रह गया तो समुद्र सी लम्बी गहराई। मैं और मेरे दो मासूम बच्चियां। जहाँ दूर दूर तक आँसुओ के भवँर में उनके जीने की वजह मिल नही पा रही थीं। वही से शुरुआत हुई भटकती आत्मा की तरह जिंदगी की असल पहचान।

जहां दर्द ने इतना मजबूत बना दिया सही गलत का आईना दिखना शुरू हुआ। अब न वो परिवार रहा न ही वो खुशियां।

शुरुआत हुई जीवन के अलग मोड़ से जहाँ मैं एक नही दो तकलीफ़ों से जूझती रही, रूपेश ने तो कब का छोड़ दिया मुझें,एक बार भी मेरा न सही अपने बच्चियों को तो सोचा होता,लेकिन नही रूपेश भी अपने परिवार से ज्यादा लगाव रखते थे।

मैं  रोज रोज के इस मुसीबत से खोखली हो रही थी। घर के हालात कमजोर पड़ते जा रहे थे। रखे पैसे भी अब पोटलियों से कम ही हो गए थे। उसमे सर पे दो बच्चियों के गठरी का बोझ।

रुपाली ने तय किया कि अब घुट कर नही डट कर सामना करने का वक्त है,अगली सुबह उसने अपनी डिग्री को जल्दी जल्दी रख ,दोनो बच्चियों को तैयार कर ज्यो ही निकलने जा रही थी तभी मकानमालिक की आवाज आई अरे रुपाली,तेरा पोस्ट आया है।दो पल को रुपाली को लगा शायद रूपेश का हो,मन को झटकते हुए साड़ियों को ठीक करते हुए रुपाली सीढ़ियों से नीचे उतरी सामने खड़े पोस्टमैन ने कहा,मैडम क्या आप ही रुपाली सिंह है??

रुपाली ने जवाब देते हुए हाथ को आगे बढ़ाया जी!पोस्टमैन, आपकी चिट्ठी। रुपाली चिट्ठी ले ज्यो ऊपर की ओर बढ़ी मकानमालिक ने टोका किसकी चिट्ठी है रुपाली,लगता है स्नेहा के पापा की तो नही,देखा आखिर बच्चो की याद आ ही गयी। रुपाली ने सुगन्धा भाभी को जवाब देते हुए कहा,याद आती तो कागज का टुकड़ा भी छोटा पड़ जाता भाभी!

रुपाली ने वही खड़े खड़े उस चिट्ठी को खोला आवाक रह गयी,धम से सीढ़ियों पर बैठ गई मानो शरीर मे झुनझुनी सी पड़ गयी हो। सुगन्धा भाभी ,अरे रूप क्या हुआ ज्यो चिट्ठी को देखा वो भी सुन्न पड़ गयी ,उस चिट्ठी में डायवोर्स के कागजात थे साथ ही लिखा था मेरे जीवन की तुम सबसे बड़ी भूल या यूं कहूं तो बड़ी गलती रही जिससे मैंने शादी कर ली। देखो रुपाली तुम्हारे बाप ने तो इतने दहेज दिए नही की मैं तुम्हें रख पालू और तुम्हारा इलाज करवा सकू। बेहतर होगा तुम खुद की जिंदगी का फैसला खुद से कर लो।

रुपाली ये क्या ?? और ये रूपेश किस बीमारी की बात कर रहा??? रुपाली आंखों को बंद करते हुए कही,भाभी मुझे स्तन कैंसर है ! सुगन्धा ,क्या?? दो पल के बाद सुगन्धा बोली,रुपाली वो तो पूर्ण रूप से तो नही मगर इसका इलाज संभव है। जानती हूं भाभी। तो बस इतनी सी बात के लिए तुम्हे घर से बेघर कर दिया रूपेश ने। रुपाली, रोती हुई खुद को संभालते हुए सीढियो से उठ ऊपर आ गई। झट निकल पड़ी,अपनी नई जीवन की राह की ओर।

चिलकती धूप में दो बच्चो के साथ नौकरी ढूढना आसान नही था। लेकिन कहते है न खुदा के घर देर है अंधेर नही!

जल्द ही उसे एक मान्यता प्राप्त स्कूल में सिलाई की टीचर की नौकरी मिल ही गयी,मगर सैलरी महज तीन सौ?
दो पल को रुपाली के जहन में उफान उठा तीन सौ में क्या कैसे हो ????? मग़र उन्ही बीच उसे प्यासे कौवे की कहानी याद आ गयी, की कंकड़ डालने से यदि कौवा पानी पी सकता है तो फिर मैं क्यों नही इस नई जीवन के शुरुआत को तीन सौ से चला सकती।

यही सोच उसने नौकरी के लिए हा कर दी। शुरुआत में बहुत मशक्कत से बच्चो का खाना पीना और पढ़ाई चला,रुपाली दिनरात एक कर मेहनत करती गयी। एक दिन अचानक से फिर वही दर्द उठ गया जो ग्यारह साल पहले उठा था,जिससे रुपाली के जीवन मे भूचाल आ गया रहा।

रुपाली सिलाई मशीन से उठ जमीन पर ही कुछ यूं पड़ गयी मानो धरती से चिपक ही जाएगी। तेज दर्द ,बुखार से कहरती हुई रुपाली ये देख उसकी बड़ी लड़की स्नेहा दौड़ कर सुगन्धा आंटी को बुला लाई,अरे रुपाली क्या हुआ तुझे अरे इसे तो तेज बुखार है? रुपाली पसीने से भीगते हुए दर्द से कहरती हुई बोली, भाभी मुझे अस्पताल ले चलोगी,अरे क्यों नही?

रुपाली ने अलमीरे की ओर इशारा करते हुए कहा उसमे कुछ पैसे है आप निकाल लीजिए। मैं आपको जल्द ही किराया दे दूँगी। सुगन्धा ने रुपाली को गले लगाते हुए कहा ,हट पगली चल पहले अस्पताल तब बकवास करियो।

दोनो बच्चो को घर मे छोड़ रुपाली और सुगन्धा जिला अस्पताल पहुँचे वहाँ रुपाली ने अपनी सारी बातें डॉ से रखी।
डॉ ने रुपाली की सारी बातें सुनी और कहा रुपाली ग्यारह साल पहले की रिपोर्ट महज गाँठ से ही सम्बंधित है मगर अब ये कैंसर का रूप धारण कर चुका है।

सुगन्धा ने पूछा , मैडम ये हो कैसे जाता हैं? डॉ भावना ने बताया, आज के बदलती जीवनशैली,विटामिन डी की कमी,से ही जुड़ा है। आज के दिनचर्या में भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर की बीमारी बड़ी तेजी से जटिल हो रही,जिसकी शुरुआत  एक छोटे से गाँठ से होते हुए एक भयावह रूप धारण कर लेती हैं। जिसमे स्तन का हटाया जाना ही ठीक समझा जाता है,लेकिन ये जरूरी नही की उसके बाद भी ये ठीक हो जाए। आजकल तो यह बीमारी कम उम्र में ही जकड़ ले रहा,जबकि स्तन कैंसर होने की उम्र 47 साल से शुरू है।

यदि सही व थोड़ी भी जानकारी रहे तो सही समय पर इसके इलाज से इसे कम किया जा सकता है। स्तन की गोलाई में कोई बदलाव जैसे एक से दूसरे का बड़ा होना। स्तन में गाँठ महसूस करना ये जरूरी नही की स्तन में गाँठ हो तो दर्द हो ही,लेकिन छूने पर ये महसूस होता है। स्तन में सूजन,स्तन में गाँठ या निप्पल में लाली,स्तन के अगल बगल हिस्सों में सूजन, या असामान्य तरीके से बड़ा होना तो तुरंत डॉ से सलाह लेनी चाहिए। तीसरा सही ब्रा का इस्तेमाल न करना भी एक कारण बन सकता है। स्तन में गांठ अक्सर ही महिलाओं में पाई जाती है। भीड़ भाड़ भरे जगहों में अक्सर लोग महिलाओं के स्तन पर वार कर देते है मतलब की तेज से हाथ मार देना ,अचानक से लगे चोट का रूप एक गाँठ में तब्दील हो जाता हैं। यदि समय रहते इसको गला दिया जाए तो ये वही रुक जाता है। दूसरा, स्तन में असामान्य कोशिकाओं की एक प्रकार की अनियंत्रित वृद्धि ,जो स्तन के किसी भी हिस्से में पनप सकता हैं,चाहे वो निप्पल्स में दूध ले जाने वाले डक्ट्स (नलियों) ही क्यों न हो?या फिर दूध करने वाले छोटे कोशो और ग्रंथहीन ऊतकों में भी हो सकता है। जिसका पता हम शुरुआती दौर में ही मेमोग्राफी से पता लगाते हैं। सुगन्धा ने भावबोध रूप से पूछा मैडम आखिर मेमोग्राफी क्या है ,क्या हमारी रुपाली इससे ठीक हो सकती है??
डॉ ने जवाब देते हुए कहा...मेमोग्राफी एक्सरे के जरिए हम चावल के दाने से भी सूक्ष्म कैंसरग्रस्त भाग का पता लगा सकते है,यदि कैंसर कम हो तो इस स्थिति में इलाज से भी ठीक कर सकते है,पूरे स्तन को निकालने की जरूरत नही पड़ती। इस मेमोग्राफी से मरीज का 90 प्रतिशत इलाज किया जा सकता है। जिसमे हम कीमोथेरेपी के माध्यम  व रेडिएशन सिकाई के माध्यम कैंसर को गलाने या यूं कहें जलाने का प्रयास करते है ताकि वे आगे बढ़ने न पाए। एमजीआर ऐसा बहुत ही कम महिलाओं में ही पाया जाता है। लेकिन जब स्तन कैंसर को ध्यान न दिया जाए तो एडवांस्ड स्टेज के अवस्था मे कैंसर बढ़ जाता है जिससे ऑपरेशन के माध्यम स्तन को निकाल दिया जाना ही ठीक हैं।

रुपाली ने काफी देर कर दी है , जिसे हमें ऑपरेशन द्वारा इसके स्तन निकालने ही पड़ेगे। रुपाली ने तो ध्यान नही दिया लेकिन क्या आप अपने मे हो रहे परिवर्तन को ध्यान देती हैं?
जानती हूं हम हर महिलाओं की सबसे बड़ी कमजोरी है आईना!

लेकिन जब हम घण्टो अपने बालों को संवारने में दे सकते है,आंखों को सुंदर आकर्षित योग्य बनाने में जुट सकते है,घण्टो शीशे के आगे हजार कपड़ो में से किसी एक को चुन सकते है, तो आखिर खुद में हो रहे बदलाव को ध्यान क्यों नही दे सकते???

आखिर हम क्यों नही खुद की सेल्फ़ एक्सआमिन करते? क्या हमें खुद से प्यार नही? हम दूसरों को प्यार देने में हर पल जुट सकते है,तो फिर हम खुद को जाँच क्यों नहीं सकते? किस बात की शर्म ये शरीर हमारा है ,हमे कोई और टटोले उसे बेहतर है कि खुद ही अपने से जाँच ले।

आज कम उम्र में ही स्तन कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी धावा बोल रही, जिसके पीछे वजह बहुत स्प्ष्ट है! महिलाओं का सही समय पर जागरूक न होना,यदि हो जाए तो किसी से कह न पाना। अब शर्म किस बात की यदि खुद की जान से प्यार है तो स्तन में हो रहे बदलाव को अनदेखा न करें।

यदि रूपेश ने रुपाली के दर्द को समझा होता तो शायद आज दोनो स्नेह रूप से साथ होते। ये जरूरी नही की हमेशा महिलाए ही घर परिवार का खयाल रखे,मुझे ऐसा लगता है कि एक कदम पुरुषों को भी आगे  बढ़ाना चाहिए। महिलाओं के दुःख सुख में ही नही ,उनके इतने नजदीक होना चाहिये जिसे वो किसी भी बात को आपसे रखने में सक्षम हो।
आज के इस लेख में मैं इतना ही कहना चाहूंगी, हमे अपना ख्याल खुद रखना है इसलिए वक्त रहते इसका इलाज कराए।

उम्मीद करती हूं आपको ये लेख समझ आए,मुझे आपके विचार का इंतजार रहेगा।जब हम खुलकर हर बात पे चर्चा कर सकते है तो अपने शरीर से जुड़े हिस्सों पर क्यों नहीं??? हम महिलाओं को ही जागरूक होना जरूरी है।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट